Tuesday, 30 June 2020

अंध श्रद्धा भक्ति ।


अंध श्रद्धा भक्ति क्या है?


अंध श्रद्धा का अर्थ है बिना विचार-विवेक के किसी भी प्रभु में आस्था करके उसकी प्राप्ति की तड़फ में पूजा में लीन हो जाना। फिर अपनी साधना से हटकर शास्त्र प्रमाणित भक्ति को भी स्वीकार न करना। दूसरे शब्दों में प्रभु भक्ति
में अंधविश्वास को ही आधार मानना।

श्रद्धालु का उद्देश्य परमात्मा की भक्ति करके उसके गुणों का लाभ पाना होता है। श्रद्धालु अपने धर्म के शास्त्रों को सत्य मानता है। यह भी मानता है कि हमारे धर्मगुरू हमें जो साधना जिस भी ईष्ट देव की करने को कह रहे हैं, वे साधना शास्त्रों से ही बता रहे हैं क्योंकि गुरुजी रह-रहकर कभी गीता


को आधार बताकर,
कभी शिवपुराण, विष्णुपुराण, देवीपुराण, कभी-कभी चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद,
सामवेद तथा अथर्ववेद) में से किसी एक या दो वेदों का हवाला देकर अपने द्वारा बताई भक्ति विधि को शास्त्रोक्त सिद्ध करते हैं। श्रद्धालुओं को पूर्ण विश्वास होता है कि जो साधना अपने धर्म के व्यक्ति कर रहे हैं वह सत्य है।
जब वह अपने धर्म के व्यक्तियों को जैसी भी भक्ति-साधना करते हुए देखता है तो वह निसंशय हो जाता है कि ये सब वर्षों से
करते आ रहे हैं, यह साधना सत्य है। वह भी उसी पूजा-पाठ को करने लग जाता है। आयु बीत जाती है।

अंध श्रद्धा भक्ति :- एक-दूसरे को देखकर की जा रही भक्ति यदि शास्त्रोक्त (शास्त्र प्रमाणित) नहीं है तो वह अंधविश्वास यानि अंध श्रद्धा भक्ति मानी जाती है।

जो ज्ञान शास्त्रों के अनुसार नहीं होता, उसको सुन-सुनाकर या देखकर उसी के आधार से साधना करते रहना। वह साधना जो शास्त्रों के विपरीत है, बहुत हानिकारक है उससे अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता है। जो भक्ति साधना शास्त्रों में प्रमाणित नहीं है,
उसे करना तो ऐसा है जैसे आत्महत्या कर ली हो। आत्महत्या करना महापाप है। इससे अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता है।
इसी प्रकार शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करना यानि अज्ञान अंधकार के कारण अंध श्रद्धा के आधार से भक्ति करने वाले का अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता है क्योंकि पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में बताया है कि :-
जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है यानि किसी को देखकर या किसी के कहने से भक्ति साधना करता है तो उसको न तो कोई सुख प्राप्त होता है, न कोई सिद्धि यानि भक्ति की शक्ति प्राप्त होती है, न उसकी गति होती है।






शास्त्र विरुद्ध भक्ति कौनसी होती है।
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जिस भक्ति साधना का प्रमाण पवित्र गीता जी और वेदों में नहीं है वह शास्त्र विरुद्ध अंध भक्ति तथा पाखंड पूजा है। जैसे 👇
एक पूर्ण परमेश्वर को छोड़कर ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा अन्य देवी देवताओं की पूजा ईष्ट रूप में करना, मूर्ति पूजा करना, तीर्थ और धामों पर मोक्ष उद्देश्य से जाना, कांवड लाना, गंगा स्नान करना, श्राद्ध, पिंडदान, तेरहवी करना, व्रत करना ये सब शास्त्र विरुद्ध भक्ति साधना है।




गीता अध्याय 16 श्लोक 24 :– इसमें स्पष्ट किया है कि ‘‘इससे तेरे लिए अर्जुन! कर्तव्य यानि जो भक्ति क्रियाऐं करनी चाहिए तथा अकर्तव्य यानि जो भक्ति क्रियाऐं नहीं करनी चाहिए, की व्यवस्था में शास्त्रों में वर्णित भक्ति क्रियाऐं ही प्रमाण हैं यानि शास्त्रों में बताई साधना कर। जो शास्त्र विपरीत साधना कर रहे हो, उसे तुरंत त्याग दो।’’
शास्त्रनुसार सतभक्ति जानने के लिए अवश्य देखें तत्वज्ञान सत्संग–
“साधना चैनल” प्रतिदिन रात 7:30 से 8:30 बजे।

“ईश्वर चैनल” प्रतिदिन रात 8:30 से 9:30 बजे।


Thursday, 25 June 2020

Jagannath puri.


Jagannath Puri ki sachyai logo ko Abhi tak pata Nahi he ki jagannath temples God Kabir ji ne banaya he. Eak indradaman nam ka Raja tha us raja ke sopan me God Vishnu ne a Kar khaha rajan eak tempal banva de or uska nam jagannath rakh dena  magar usme murti nahi honi Chahiye or kaoi pakhand Puja bhi nahi honi Chahiye .usme Eak pandit ji ko bithana or shrimad Bhagavad Gita ka path chalu Karna Koi pakhand Puja Nahi Karna. 
                                                   Bhagvan ne Raja ke sopan me o sthan dikha diya samundar ke kinare. Raja jab subha utha to bhaut khush hua. Or apni patni ko jo bhi dikha sab bata diya patni bhi khush hui or kaha apke pas to itna dhan he to banva lijiye bhaut achai bat he .


Jagannath photos



                                                To raja ne mandir banavne vale karigar ko bulaya or mandir ka naksha banaya mandir banke tayar ho gaya or agle di Puja rakhi agle din hone se Pahale hi samundar ne o mandir tod diya Yese 3-4 bar mandir banaya Fir samundar ne tod diya. 
                                           Raja to bhaut dukhi ho gaya ro raha or kah raha muz per bhagvan ne  bharosa karke mandir banane ko kaha muz nich se utna bhi nahi ho raha he abto Sara khajana bhi khatam ho gaya he. Tab patni ne kaha chinta na Karo mere gahane leke jao Ap . Itne me udhar gorakhnath a gaya or ka mandir banva rahe ho usme murti nahi he tab raja ne kaha bhagvan ne bola he murti nahi honi Chahiye. Gorakhnath ne eye lal karli or kaha esme murti honi Chahiye . Tab raja ghabra gai kahi sadhu shrap na de de tab murti banavne ka kam bhi chalu kiya magar murti nahi ban rahi thi bar bar tut rahi thi tab Kabir bhagvan ne bana di thi magar gorakhnath ke galti ke karn uske hath or per nahi ban paye. 
Ap ko iski sahi jankari is video me milegi 
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Or jo mandir bar bar tut raha tha usko bhi parmeshur Kabir ji ne hi banvaya tha. 

Sant rampalji maharaj ji apne shastro per adharit purn parmatma ki jankari batate he jiski bhakti karne se hamara mokha bhi ho ga or sare sukh bhi mileage. 


Saturday, 20 June 2020

Bhakti Yoga : योग दिन।


 गीता अनुसार असली योग भक्ति योग है। 

पूर्ण सतगुरु सन्त रामपाल जी महाराज जी ने वास्तविक योग भक्ति योग बताया है जिससे हर प्रकार की बीमारियां समाप्त होती हैं। तथा पुरनमोक्ष मिलता है। योग करने से शरीर स्वस्थ हो सकता है लेकिन मुक्ति नहीं होती। मुक्ति तो सच्चे मंत्रों के जाप करने से ही होगी, शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से होगी।
हठ योग करने के लिए गीता जी मे भी मना है इसलिए एक स्थान पर बैठकर साधना करने से भक्ति सफल नहीं हो सकती
संत रामपाल जी महाराज जी ने सहज भक्ति योग के बारे में सर्व शास्त्रों से प्रमाणित करके बताया है कि मनुष्य को पूर्ण लाभ केवल भक्ति योग से होगा।



🧘🏻‍♂️ गीता अध्याय 6 लोग 16 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि यह योग ना तो बहुत अधिक खाने वाले का सिद्ध होता है और नहीं बिल्कुल न खाने वाले का।अर्थात नियम कर्तव्य कर्म करते हुए पूर्ण परमात्मा की सतभक्ति करना ही असली योग है।
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भक्ति योग क्यों ज़रूरी है?

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग ज़रूरी है।
लेकिन
आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए भक्ति योग (सतभक्ति) ज़रूरी है।
भक्तियोग से होने वाले लाभ :

●शारीरिक , मानसिक और आर्थिक लाभ
● पाप कर्मों से मुक्ति।
●जीवन में सुख, शांति व खुशियों में वृद्धि।
●मोक्ष की प्राप्ति। आदि।

सत्य भक्तियोग विधि जानें पूर्ण संत Saint Rampal Ji Maharaj से।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 64, 65 में कहा गया है कि शास्त्रविधि अनुसार पूर्ण परमात्मा की साधना करने वाला साधक, संसार में रहकर काम करता हुआ, परिवार पोषण करता हुआ भी सत्य साधना से सुखदाई मोक्ष को प्राप्त होता है।



🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 48 में कहा गया है कि आसक्ति को त्यागकर जय तथा पराजय में सम बुद्धि होकर योग यानि सत्य साधना में लगकर भक्ति कर्म कर। गीता जी में योग का अर्थ भक्ति कर्म करना बताया गया है।
गीता अध्याय 17 श्लोक 5 ,6 में शास्त्र विधि को त्याग कर , घोर तप को तपते हैं। उनको राक्षस बताया है गीता ज्ञान दाता ने।
💥🌹 सैकड़ों योगिक गुरू अपनी अपनी योगिक क्रियाओं को उत्तम बताते हैं। परंतु मनुष्य को योगिक क्रियाओं की नहीं भक्ति योग की अति आवश्यकता है। जिससे  आत्मिक उन्नति व मोक्ष का द्वार खुलेगा।
गीता अध्याय 3 श्लोक 5 से 8 में प्रमाण है कि जो एक स्थान पर बैठकर हठ योग करके इन्द्रियों को रोककर साधना करते हैं वे पाखण्डी हैं।
संतों की वाणी है
डिंब करें डूंगर चढ़े, अंतर झीनी झूल।
जग जाने बंदगी करें, ये बोवैं सूल बबूल।।



जो रोग योग करने से ठीक नही होते है वे रोग पूर्ण गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के द्वारा बताई गई सतभक्ति से ठीक हो जाते है ।

भक्तियोग श्रेष्ठ क्यों माना गया है?

उत्तर - क्योंकि इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से बिना डॉक्टरी ईलाज के ही अपने आपको ठीक किया जा सकता है।

Saint Rampal Ji Maharaj से नाम दीक्षित लाखों अनुयायी इसकी गवाह है।
हमें मनुष्य जन्म बहुत ही भाग से मिला है तो हमें पूर्ण गुरु से उपदेश लेकर के भक्ति योग करना चाहिए ।

वास्तविक योग भक्ति योग है जिसे शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
अधिक जानकारी के लिए देखे साधना टीवी पर 7:30 से 8:30 PM तक संत रामपाल जी महाराज जी के अमृत वचन।