अगर हम भगवान के संविधान पर चले तो परमात्मा जो चाहे सो कर दे।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा तो घोर पाप को भी नष्ट कर देता है शास्त्र अनुकूल सत Bhakti करने से कैंसर जैसी भयानक बीमारी भी ठीक हो जाती है।
84 लाख योनि में मनुष्य को गधा कुत्ता बनकर कष्ट नहीं भोगने पड़ेंगे सत भक्ति से मनुष्य का जन्म मरण का रोग छूट जाता है।
नाचना गाना निंदा करना जुआ खेलना जीव हिंसा करना परस्त्री से अवैध संबंध बनाना रिश्वत लेना झूठ बोलना चोरी करना यह सब भगवान के संविधान के विरुद्ध है यह अपराध करने वाले मृत्यु के उपरांत नरक में जाकर घोर कष्ट उठाते हैं।
छुआछूत ऊंचा नीचा जाति पात मान बड़ाई किसी को छोटा समझना उस की जाति को गाली देना यह सब परमात्मा के विधान के खिलाफ है हम सब एक ही परमात्मा के बंदे हैं.
जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।
सबका मालिक एक है भगवान खुदा अल्लाह आदि नाम एक ही प्रभु के हैं। भगवान के बंटवारे तो लोगों ने कीये है जाति पति पर लोग लड़ रहे हैं यह जो हो रहा है वह भगवान के संविधान के खिलाफ है हम सब भाई भाई हैं सबने मिल जुल कर रहना चाहिए तभी भगवान प्रसन्न होंगे।
गरीब दास जी ने अपनी वाणी में बताया है की हुक्का पीने वाला शराब पीने वाला परस्त्री से अवैध संबंध बनाने वाले को कितना कष्ट भोगना पड़ता है।
गरीब, सोनारी जारी करे सुरा पान सौ बार। एक चिलम हुक्का भरे डूबे काली धार ।। हुक्का हरदम पिवते लाल मिलावे धुर इसमें संशय है नहीं जन्म पिछले सूअर।।
इसका अर्थ है कि एक चिलम भर कर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वाले को जो पाप लगता है वह सुनो एक बार परस्त्री गमन करने वाला एक बार शराब पीने वाला एक बार मांस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्त कष्ट भोगता है। सौ स्त्रियों से भोग करें और 100 बार शराब पिए उसे जो पाप लगता है वह पाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता है।
Nostradamus prediction about Saint rampalji maharaj .
जी हा आज हम उस महान संत के बारे में बता रहे हैं जिसके जन्म से पहले ही उनकी आने की भविष्य वक्ताओं ने भविष्यवाणी कर दी थी हम बात कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज के बारे में आइए जानते हैं उनके बारे में भविष्यवाणी। Nostradamus :-
उनकी भविष्यवाणी के अनुसार उस तत्व दृष्टया शायरण का आध्यात्मिक जन्म होगा उस दिन अंधेरी अमावस्या होगी उस समय उस विश्व नेता की आयु तरुण नहीं होगा बल्कि वह प्रौढ़ होगा और वह 50 और 60 वर्ष के बीच की उम्र में संसार में प्रसिद्ध होगा वह 2006 होगा। उन्होंने कहा था की उस महान संत का जन्म स्वतंत्रता के 4 वर्ष बाद होगा यानी कि 1951 में होगा और संत रामपाल जी महाराज जी का जन्म 8 सितंबर 1951 में हुआ था.
नास्त्रोदमस शतक 1 श्लोक 50 में प्रमाणित कर रहा है) तीन ओर से सागर से घिरे द्वीप में उस महान संत का जन्म होगा। नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के अनुसार वह महान संत रामपाल जी है जिन की अध्यक्षता में पूरे विश्व में शांति स्थापित होगी एक ज्ञान होगा एक झंडा होगा। बाबा जयगुरुदेव :- मथुरा वाले बाबा जय गुरुदेव जीने 7 सितंबर 1971 में एक भविष्यवाणी की थी कि लोग जिसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं वह अवतार आज 20 साल का हो चुका है। अभी मैंने उसका पता बता दिया तो लोग उसके पीछे लग जाएंगे मगर ऊपर से आदेश नहीं है।
और 8 सितंबर 1971 में संत रामपाल जी महाराज पूरे 20 साल के हो चुके थे यह भविष्यवाणी उनके ऊपर सटीक बैठती है। जीन डिक्शन :-
अमेरिका की महिला भविष्यवक्ता जिन डिक्शन के अनुसार 20 वि सदी के अंत से पहले विश्व में घोर हाहाकार तथा मानवता का संहार होगा वैचारिक युद्ध के बाद आध्यात्मिक पर आधारित एक नई सभ्यता संभवत भारत के ग्रामीण परिवार के व्यक्ति के नेतृत्व में जन्मे गी ।
फ्लोरेन्स:- मैं जब भी ध्यान लगाती हूं तो मुझे एक संत दिखाई देता है। उस संत की विचारधारा से समाज में एक नई जन जागृति आएगी लोगों में एक अलग विचारधारा आएगी।
लोक शक्ति का एक नया रूप उभर कर सामने आएगा। उस संत के ऊपर ऊपर से कोई एक नई शक्ति निरंतर आ रही है उसके सफेद बाल है ना उसको दाढ़ी मूछ है। आनंन्दचार्य:- नार्वे के श्री आनन्दाचार्य की भविष्यवाणी के अनुसार, सन् 1998 के बाद एक शक्तिशाली धार्मिक संस्था भारत में प्रकाश में आयेगी, जिसके स्वामी एक गृहस्थ व्यक्ति की आचार संहिता का पालन सम्पूर्ण विश्व करेगा। जूल वर्न :-
जुल वर्ण एक सुप्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक और भविष्य वक्ता है उनकी अनेकों भविष्यवाणियां सत्य सिद्ध हो चुकी है भारत को लेकर उन्होंने एक भविष्यवाणी कि है।
भारतवर्ष में बीसवीं सदी के मध्य में इतिहास के सबसे समर्थ व्यक्ति का जन्म हो चुका है जो आध्यात्मिक क्रांति का सूत्रपात करेगा इस क्रांति से ईश्वर एवं आत्मा के नए रहस्य प्रकट होंगे ।
बाहर से उठे आध्यात्मिक तूफान देखते देखते पूरे विश्व में फैल जाएगा और लोगों में नई अध्यात्म क्रांति आएगी।
और भी कई भविष्य वक्ताओं ने संत रामपाल जी महाराज जी के बारे में भविष्यवाणियां की है उनको सविस्तर से जाने के लिए इस वीडियो को देखना ना भूलें
संत रामपाल जी महाराज ही वह महापुरुष है जो दुनिया में शांति लायेंगे एक झेंडा एक भाषा होगी संत रामपाल जी विश्व में शांति ला सकते हैं गुंडागर्दी चोरी रिश्वतखोर बलात्कार इन सभी बुरायोंका अंत कर सकते हैं भारत में फिर से स्वर्ण युग आएगा।
संत रामपाल जी महाराज शास्त्र के अनुसार Bhakti बताते हैं जिसको करने से मनुष्य की नशा, चोरी ,रिश्वत खोरी सभी बुराइयां दूर हो जाती है.
सतभक्ति करना ज़रूरी_है
84 लाख योनियों में महा कष्ट भोगने से बचने के लिए सत भक्ति करना अति आवश्यक है।
समय रहते सत भक्ति तथा शुभ कर्म नहीं की तो अगले जन्म में पशु, पक्षी आदि का जीवन प्राप्त करके महा कष्ट उठाने पड़ेंगे।
भक्ति से आर्थिक, मानसिक और शारीरिक सुख होता है। इसलिए भक्ति करना जरूरी है।
आजकल लोग बहुत Movie देख रहे हैं और उसमें चोरी बलात्कार गुंडागर्दी ऐसी चीजें दिखाते हैं और इसी चीजों को देखकर समाज में बुराइयां फैल रही है मगर संत रामपाल जी महाराज जी का शिष्य बनने के लिए Movie देखना मना है इसी से ऐसी चीजों के लिए रोक लग जाती है.
धन से बात नही बनेगी सतलोक जाने के लिए आध्यात्मिक धन का होना सत भक्ति जरूरी है ।
सतभक्ति अति आवश्यक है क्योंकि स्तभक्ति बिना मोक्ष असम्भव है।
मानव जीवन में सतभक्ति नहीं की तो परमात्मा के विधान अनुसार चौरासी में महाकष्ट उठाना पड़ता है। सतभक्ति पूर्ण सन्त ही बताते हैं और वर्तमान में पूर्ण संत संत रामपाल जी महाराज जी है 🙏🙏
भक्ति से हमारे सभी दुख दूर होते हैं और हमे जन्म मरण से भी छुटकारा मिल जाता है
हमारा मोक्ष हो जाता है
Saint Rampal Ji Maharaj
एक प्रकार से संत रामपाल जी महाराज जीने समाज से बुराइया खत्म करने की ठान ली है।
और तों और इनके शिष्य ना Dowry देते हैं ना Dowryलेतेे हे । दहेज मुक्त समाज का निर्माण कर रहे हैं और अब किसी भी बेटी को दहेज की आग में ना पड़ेगा।
फारसी भाषा में तमा गाय को कहते हैं खू यानी रक्त को कहते हैं। यह तंबाकू गायक के रक्त से उपजा है। मानव तेरे को 100 बार सौगंद है कि इस तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में मत करो।
Sant rampalji maharaj
सच्ची भक्ति करने से मर्यादा में रहकर भक्ति करने से संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई शास्त्र अनुसार भक्ति करने से भगवान भयंकर से भयंकर पापों का विनाश कर देता है और साधक की आयु बढ़ा देता है जो ब्रह्मा विष्णु महेश भी नहीं बढ़ा सकते हैं
शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से ऐसे ठीक होता है Cancer.
👇
सतभक्ति से ही हमारे पाप नष्ट हो सकते हैं और चौरासी लाख योनियों तथा जन्म मरण का चक्र समाप्त हो सकता है। इससे भूत-प्रेत, पित्तर-भैरव-बेताल असाध्य रोग cut जाते हैं सत भक्ति करने से हम देव बनते हैं ।
सतभक्ति इसलिए आवश्यक है क्योंकि इससे ही रोग नाश हो सकते हैं।
असाध्य बीमारियों का इलाज सतभक्ति से ही संभव है।
इसलिए सतभक्ति अपनाएं, जीवन सफल बनायें।
👇🏻
इस दुनिया में सिर्फ रामपाल जी महाराज शास्त्र के अनुसार भक्ति बताते हैं इससे कैंसर एड्स जेसी लाइलाज बीमारियां ठीक हो जाती है।
कई लोगों को ऐसी बीमारी होती है जिस को ठीक करना डॉक्टर के बस की बात नहीं है फिर डॉ मेडिसिन चालू करते हैं और कहते हैं देखते हैं आगे क्या होगा मगर संत रामपाल जी महाराज जो शास्त्र के अनुसार भक्ति बताते हैं उसी से किसी भी प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती है हम भक्ति करते हैं ताकि भगवान से हमें राहत मिले मगर हमें राहत तभी मिल सकती है जब हम शास्त्र के अनुसार भक्ति करें।
यजुर्वेद अध्याय 8 के मंत्र 13 में कहां है कि पूर्ण परमात्मा तो घोर पाप को भी नष्ट कर देता है.
ऐसे होता है सत भक्ति से सभी बुराइयों का अंत.
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा सतभक्ति लेकर लेकर लाखों लोगों ने नशा चोरी जारी दहेज लेना देना अन्य सभी प्रकार की सभी प्रकार की बुराइयों को त्याग कर सत भक्ति करके अपना मानव जीवन सफल बना रहे हैं अधिक जानकारी पढ़े पुस्तक जीने की राह ।
आज से लगभग पाँच_हजार_वर्ष पहले कोई भी धर्म या अन्य सम्प्रदाय नहीं था। न हिन्दु, न मुसलिम, न सिक्ख और न ईसाई थे। केवल मानव_धर्म था। सभी का एक ही मानव धर्म था और है। लेकिन जैसे-2 कलयुग का प्रभाव बढ़ता गया वैसे-2 हमारे में मत-भेद होता गया। कारण सिर्फ यही रहा कि धार्मिक कुल गुरुओं द्वारा शास्त्रों में लिखी हुई सच्चाई को दबा दिया गया। कारण चाहे स्वार्थ हो या ऊपरी दिखावा। जिसके परिणाम स्वरूप आज एक मानव धर्म के चार धर्म और अन्य अनेक सम्प्रदाय बन चुके हैं। जिसके कारण आपस में मतभेद होना स्वाभाविक ही है। सभी_का_प्रभु_भगवान_राम_अल्लाह_रब_गोड_खुदा_परमेश्वर_एक_ही_है। ये भाषा भिन्न पर्यायवाची शब्द हैं। सभी मानते हैं कि सबका मालिक एक है लेकिन फिर भी ये अलग-अलग धर्म सम्प्रदाय क्यों ?
यह बात बिल्कुल ठीक है कि सबका मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/गोड/ राम/परमेश्वर एक ही है जिसका वास्तविक_नाम_कबीर_है और वह अपने सतलोक/सतधाम/सच्चखण्ड में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है। लेकिन अब हिन्दु तो कहते हैं कि हमारा राम बड़ा है, मुसलिम कहते हैं कि हमारा अल्लाह बड़ा है, ईसाई कहते हैं कि हमारा ईसामसीह बड़ा और सिक्ख कहते हैं कि हमारे गुरु नानक साहेब जी बड़े हैं। ऐसे कहते हैं जैसे चार नादान बच्चे कहते हैं कि यह मेरा पापा, दूसरा कहेगा यह मेरा पापा है तेरा नहीं है, तीसरा कहेगा यह तो मेरा पिता जी है जो सबसे बड़ा है और फिर चैथा कहेगा कि अरे नहीं नादानों! यह मेरा डैडी है, तुम्हारा नहीं है। जबकि उन चारों का पिता वही एक ही है। इन्हीं नादान बच्चों की तरह आज हमारा मानव समाज लड़ रहा है।
जबकि हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह_एक_मालिक_प्रभु_कबीर_साहेब_है_जो_सतलोक_में_मानव_सदृश_स्वरूप_में_आकार_में_रहता_है।
वेद, गीता, कुरान और गुरु ग्रन्थ साहेब ये सब लगभग मिलते जुलते ही हैं। यजुर्वेद के अ. 5 के श्लोक नं. 32 में, सामवेद के संख्या नं. 1400, 822 में, अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 के अनुवाक 1 के श्लोक नं. 7, ऋग्वेद के म. 1 अ. 1 के सुक्त 11 के श्लोक नं. 4 में कबीर नाम लिख कर बताया है कि पूर्ण ब्रह्म कबीर है जो सतलोक में आकार में रहता है। #गीता_जी_चारों_वेदों_का_संक्षिप्त_सार_है। गीता जी भी उसी सतपुरुष पूर्ण ब्रह्म कबीर की तरफ इशारा करती है। #गीता जी के अ. 15 के श्लोक नं. 16.17, अ. 18 के श्लोक नं. 46, 62 अ. 8 के श्लोक नं. 8 से 10 तथा 22 में, अ. 15 के श्लोक नं. 1,2,4 में उसी पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने का इशारा किया है।
#श्री_गुरु_ग्रन्थ_साहेब पृष्ठ नं. 24 पर और पृष्ठ नं. 721 पर नाम लिख कर कबीर साहेब की महिमा गाई है। इसी प्रकार कुरान और बाईबल एक ही शास्त्र समझो। दोनों लगभग एक ही संदेश देते हैं कि उस कबीर अल्लाह की महिमा ब्यान करो जिसकी शक्ति से ये सब सृष्टी चलायमान हैं। #कुरान_शरीफ में सूरत फूर्कानि नं. 25 की आयत नं. 52 से 59 तक में कबीरन्, खबीरा, कबीरू आदि शब्द लिख कर उसी एक कबीर अल्लाह की पाकि ब्यान की हुई है कि ऐ पैगम्बर (मुहम्मद)! उस कबीर अल्लाह की पाकि ब्यान करो जो छः दिन में अपनी शक्ति से सृष्टी रच कर सातवें दिन तख्त पर जा बिराजा अर्थात् सतलोक में जा कर विश्राम किया। वह अल्लाह (प्रभु) कबीर है। इसी का प्रमाण #बाईबल के अन्दर उत्पत्ति ग्रन्थ में सृष्टी क्रम में बाईबल के प्रारम्भ में ही सात दिन की रचना में 1:20-2:5 में है।
सभी संतों व ग्रथों का सार यही है कि पूर्ण गुरु जिसके पास तीनों नाम है और नाम देने का अधिकार भी हो से नाम ले कर जीव को जन्म-मृत्यु रूपी रोग से छुटकारा पाना चाहिए। क्योंकि हमारा_उद्देश्य काल की कारागार से छुटवा कर अपने मूल मालिक कविर्देव (कबीर साहेब) के सतलोक को प्राप्त करना है। कविर्देव ने अपनी वाणी में कहा है कि एक जीव को काल साधना से हटा कर पूर्ण गुरू के पास लाकर सत उपदेश दिलाने का पुण्य इतना होता है कि जितना करोड़ गाय-बकरें आदि प्राणियों को कसाई से छुटवाने का होता है। क्योंकि यह अबोध मानव शरीर धारी प्राणी गलत गुरुओं द्वारा बताई गई शास्त्र विरूद्ध साधना से काल के जाल में फंसा रह कर न जाने कितने दुःखदाई चौरासी लाख योनियों के कष्ट को झेलता रहता है। जब यह जीवात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण में पूरे गुरू के माध्यम से आ जाती है, नाम से जुड़ जाती है तो फिर इसका जन्म तथा मृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त हो जाता है और सतलोक में वास्तविक परम शांति को प्राप्त करता है।
अब प्रश्न आता है कि आजकल गुरु ज्यादा से ज्यादा शिष्य बना कर अपनी योग्यता का प्रमाण दिखाते हैं अर्थात् हर कोई चार कथा सीख लेता है और कहता कि मैं भी नाम दे देता हूँ और भोली आत्माओं को काल के जाल में डाल देता है। चूंकि शास्त्रों के विरूद्ध नाम उपदेश देने वाले और जपने वाले सभी निश्चित ही नरक के अधिकारी होंगे और उनको नरक में उल्टा लटकाया जाएगा। यह कथन शास्त्रा (गीता, वेद व सर्व ग्रन्थ) ही बताते हैं। इसी कथन को सिद्ध करने के लिए एक संक्षिप्त कथा बताता हूँ।
एक समय की बात है कि सभी को पता चला कि राजा परिक्षित को सातवें दिन सर्प डसेगा और उसकी मृत्यु होगी। इस बात का पता लगने पर सभी ने सोचा कि सात दिनों तक राजा परिक्षित को भागवत् की कथा सुनाई जाए ताकि इसका यहाँ से मोह हट जाए और प्रभु के चिंतन में लग जाए। क्योंकि मरते समय जिसकी जैसी भावना होती है वह उसी को प्राप्त होता है। सभी ने कहा कि अति उत्तम है। लेकिन अब कथा करे कौन? इस प्रश्न पर प्रश्नवाचक चिन्ह लग जाता है। इस समय वहाँ उपस्थित सभी महर्षियों ने यहाँ तक कि #श्रीमद्_भागवत्_सुधा_सागर_के_रचयिता_महर्षि_वेद_व्यास_जी ने भी अपने आपको कथा सुनाने के योग्य नहीं समझा। क्योंकि उनको पता था कि हमारे अन्दर यह समर्थता नहीं है। इसलिए क्यों एक जीव के जीवन को नष्ट करके पाप के भागीदार बनें। चूंकि साँतवें दिन परिणाम आना था। इसलिए सात दिन तक कथा सुनाने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ी। चूंकि सभी को अपनी औकात का पता होता है। स्वर्ग से सुखेदव_जी को भागवद् की कथा करने के लिए बुलाया गया और तब राजा परिक्षित का मोह यहाँ से हटा और स्वर्ग की प्राप्ति हुई। स्वर्ग में सुख भोगने के पश्चात् वापिस नरक में और फिर लख चौरासी में चक्कर काटेगा। ये यहाँ का हार्ड_एण्ड_फास्ट_रूल है अर्थात् अटल_नियम है। यह उपलब्धि भी तीन लोक के पूर्ण गुरु बिना प्राप्त नहीं हो सकती।
ठीक इसी प्रकार जब किसी स्थान पर प्रधानमन्त्री आ रहा हो तो उनके आने से पहले दो-तीन बहुत अच्छे वक्ता/गायक व तबले-बैंजू बजाने वाले होते हैं जो बहुत सुरीली और आकर्षक आवाज से दर्शकों को प्रभावित करते हैं। लेकिन वे जो कह रहे हैं उनमें से एक बात भी करने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन जब प्रधान मन्त्री आता है तो वह कम से कम शब्दों में कहता है कि आगरा में इन्टरनेशनल कॉलेज बनवा दो, चण्डीगढ़ में इन्टरनेशनल युनिवर्सिटी बनवा दो आदि-2 सिर्फ इतना कह कर पी. एम. साहब चले जाते हैं। उनके कहने से अगले दिन ही वह कार्य प्रारम्भ हो जाता है क्योंकि उनके वचन में शक्ति है और यदि यही बात आप और मेरे जैसा आम_व्यक्ति कहे तो हमारी बड़ी मूर्खता होगी क्योंकि हमारे वचन में इतनी शक्ति नहीं है। जबकि #प्रधानमन्त्री के लिए ये सब साधारण बात है।
इन तथ्यों को प्रमाणित करने के लिए कुछ निम्नलिखित वाणियाँ अवश्य पढ़ें और गहन विचार करें।
कबीर, पंडित और मशालची, दोनों सूझैं नाहिं। औरों ने करैं चांदना, आप अंधेरे माहिं।। कबीर, करणी तज कथनी कथैं, अज्ञानी दिन रात। कुकर ज्यों भौंकत फिरैं, सुनी सुनाई बात।। गरीब, बीजक की बातां कहैं, बीजक नाहिं हाथ। पृथ्वी डोबन उतरे, कहै-कहै मीठी बात।। गरीब, बीजक की बातां कहैं, बीजक नाहिं पास। औरों को प्रमोध हीं, आपन चले निराश।। गरीब, कथनी के शूरे घने, कथैं अटम्बर ज्ञान। बाहर ज्वाब आवै नहीं, लीद करैं मैदान।।
कथा करना व नाम उपदेश देना कोई बच्चों का खेल नहीं है कि ली काख में पोथी चलो मैं भी कथा कर देता हूँ, चलो मैं भी रामायण का पाठ कर देता हूँ, गीता जी का पाठ कर देता हूँ, ग्रन्थ साहेब का पाठ कर देता हूँ अर्थात् सतसंग कर देता हूँ और नाम भी दे देता हूँ आदि-2 । पूर्ण संत को ही कथा करने व उपदेश देने का अधिकार होता है और उस कथा का समापन भी वही कर सकता है। चूंकि पूर्ण संत के शब्द में शक्ति होती है। जैसे सुखदेव के शब्द में थी। जैसे कोई सतसंग करे और मान लो उसमें आम की महिमा बताए कि आम बहुत मीठा होता है, फलों का राजा होता है, उसका रंग पीला होता है आदि-2 और यदि कोई आ कर कहे कि ला भाई आम दो। तो वह सतसंग करने वाला कहे कि मेरे पास तो आम नहीं है। फिर लेने वाला कहे कि कहाँ मिलेगा ? उसको जवाब मिले कि पता नहीं। आम तो निराकार है वह दिखाई थोड़े ही देता है। फिर लेने वाला कहेगा कि अरे नादान! जब तेरे पास आम है ही नहीं और न ही तेरे को ये पता कि आम कहाँ से मिलेगा, साथ में कह रहा है कि वह निराकार है तो व्यर्थ में शोर मचाता क्यों फिर रहा है? कहने का अभिप्राय यह है कि तत्वज्ञान रहित व बिना अधिकारी कथा करने वाले और उसके मुख से सुनने वाले सभी नरक के अधिकारी होते हैं।
यदि कोई व्यक्ति अपने आप ही गुरु बन कर शिष्य बना लेता है तो समझो अपने सिर पर भार चढ़ा लेता है। क्योंकि #परमेश्वर_का_नियम है कि जब तक शिष्य पार नहीं होगा तब तक गुरु को बार-2 जन्म लेते रहना पड़ता है। पूर्ण गुरु अधूरे शिष्यों से छुटकारा पाने के लिए ऐसी लीला किया करते हैं जिससे अज्ञानी शिष्यों को गुरु के प्रति नफरत हो जाती है। जैसे कबीर साहेब जब काशी में प्रकट हुए थे। उस समय कबीर साहेब के चौसठ लाख शिष्य बन गए थे। उनकी परीक्षा लेने के लिए कबीर साहेब ने काशी शहर की एक मशहूर वैश्या को सतसंग ज्ञान समझाने के लिए उसके घर पर जाना शुरु कर दिया। जिसको देख व सुन कर चेलों के दिल में गुरु के प्रति घृणा पैदा हो गई और सभी का अपने गुरु के प्रति विश्वास टूट गया। केवल दो को छोड़ कर सभी शिष्य गुरु विहीन हो गए। सतगुरु गरीबदास जी महाराज की वाणी में प्रमाण है:--
गरीब, चंडाली के चैंक में, सतगुरु बैठे जाय। चौसठ लाख गारत गए, दो रहे सतगुरु पाय।। भड़वा भड़वा सब कहैं, जानत नाहिं खोज। दास गरीब कबीर करम से, बांटत सिर का बोझ।।
हम आपसे यही प्रार्थना करना चाहते हैं कि सोच विचार कर सौदा करो।
सामवेद के श्लोक नं. 822 में बताया गया है कि जीव की मुक्ति तीन नामों से होगी। प्रथम ऊँ, दूसरा सतनाम (तत्) और तीसरा सारनाम (सत्)। यही गीता जी भी प्रमाण देती है कि - ऊँ-तत्-सत् और श्री गुरु ग्रन्थ साहेब भी इसी सतनाम जपने का इशारा कर रहा है। सतनाम-सतनाम कोई जपने का नाम नहीं है। यह तो उस नाम की तरफ इशारा कर रहा है जो एक सच्चा नाम है। इसी तरह यह सारनाम भी। अकेला ऊँ मन्त्र किसी काम का नहीं है। ये तीनों नाम व नाम देने की आज्ञा केवल संत_रामपाल_जी_महाराज को उनके गुरुदेव स्वामी रामदेवानन्द जी महाराज द्वारा बकसीस है जो कबीर साहेब से पीढी दर पीढी चलती आ रही है। पहले आप सभी सतसंग सुनो, सेवा करो जिससे आपका भक्ति रूपी खेत संवर जाएगा।
कबीर, मानुष जन्म पाय कर, नहीं रटैं हरि नाम। जैसे कुआँ जल बिना, खुदवाया किस काम।। कबीर, एक हरि के नाम बिना, ये राजा ऋषभ होए। माटी ढोवै कुम्हार की, घास न डाले कोए।।
इसके पश्चात् अपने संवरे हुए खेत में बीज बोना होगा। शास्त्रों (कबीर साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुराण, धर्मदास साहेब आदि संतों की वाणी) के अध्ययन से मुक्ति नहीं होगी। इन सभी शास्त्रों का एक ही सार (निचोड़) है कि पूर्ण मुक्ति के लिए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के प्रतिनिधि संत(जिनको उनके गुरु द्वारा नाम देने की आज्ञा भी हो) से नाम उपदेश ले कर आत्म कल्याण करवाना चाहिए। यदि नाम नहीं लिया तो -
नाम बिना सूना नगर, पड़या सकल में शोर। लूट न लूटी बंदगी, हो गया हंसा भोर।।
अदली आरती अदल अजूनी, नाम बिना है काया सूनी।झूठी काया खाल लुहारा, इंगला पिंगला सुषमन द्वारा।।
कृतघ्नी भूले नर लोई, जा घट निश्चय नाम न होई। सो नर कीट पतंग भुजंगा, चौरासी में धर है अंगा।
यदि बीज नहीं बीजा तो आत्मा रूपी खेत की गुड़ाई अर्थात् तैयारी करना व्यर्थ हुआ। कहने का अभिप्राय यह है कि इनसे आपको ज्ञान होगा जो कि आवश्यक है। परंतु पूर्ण गुरू द्वारा नाम उपदेश लेना अर्थात् बीज बीजना भी अति आवश्यक है। नाम भी वही जपना होगा जो कि गुरु नानक साहेब ने जपा, गरीबदास साहेब ने जपा, धर्मदास साहेब आदि संतों ने जपा। इसके अतिरिक्त अन्य नामों से जीव की मुक्ति नहीं होगी।
इसलिए आप सभी ने नाम उपदेश लेकर अपना भक्ति रूपी धन जोड़ना प्रारम्भ करना चाहिए और अन्य सभी को भी बताना चाहिए। जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी। चूंकि न जाने कब और किस समय इस शरीर का पूरा होने का समय आ जाए। गुरु नानक देव जी भी कहते हैं कि-
ना जाने ये काल की कर डारै, किस विधि ढल जा पासा वे। जिन्हादे सिर ते मौत खुड़गदी, उन्हानूं केड़ा हांसा वे।।
कबीर साहेब कहते हैं कि -
कबीर, स्वांस-स्वांस में नाम जपो, व्यर्था स्वांस मत खोए। न जाने इस स्वांस का, आवन हो के ना होए।।
सतगुरू सोई जो सारनाम दृढ़ावै, और गुरू कोई काम न आवै।
‘‘सार नाम बिन पुरुष (भगवान) द्रोही‘‘
अर्थात् जो गुरू सारनाम व सारशब्द नहीं देता है या उसको अपने गुरू द्वारा नाम देने का अधिकार (आज्ञा) नहीं है अर्थात् शास्त्रों के अध्ययन से यदि कोई मनमुखी गुरु ये नाम भी दे देता हो तो भी वह गुरु और उनके शिष्यों को नरक में डाला जाएगा। वह गुरु भगवान का दुश्मन है, विद्रोही है। उसे भगवान के दरबार में उल्टा लटकाया जाएगा।
अब भक्त समाज में नकली गुरुओं (संतों) द्वारा एक गलत धारणा फैला रखी है कि एक बार गुरु धारण करने के पश्चात दूसरा गुरु नहीं बदलना चाहिए। जरा विचार करके देखो कि गुरु हमारे जन्म-मृत्यु रूपी रोग को काटने वाला वैद्य होता है। यदि एक वैद्य से हमारा रोग नहीं कटता है तो हम दूसरे अच्छे वैद्य(डाक्टर) के पास जाएंगे जिससे हमारा जानलेवा रोग ठीक हो सके। जैसे धर्मदास साहेब के पहले गुरु श्री रूपदास जी थे। लेकिन जब धर्मदास जी को पता लगा कि यह गुरु पूर्ण मुक्ति दाता नहीं है तो तुरंत त्याग कर पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर सतपुरुष कबीर साहेब को अपना गुरु बनाया और पूर्ण मोक्ष सत्य लोक में प्राप्त किया। ठीक इसी प्रकार अधूरे गुरु को तुरंत त्याग देना चाहिए।
‘‘झूठे गुरु के पक्ष को, तजत न कीजै वारि‘‘
(गुरु व नाम महिमा की वाणी)
गरीब, बिन उपदेश अचंभ है, क्यों जीवत हैं प्राण। बिन भक्ति कहाँ ठौर है, नर नाहिं पाषाण।।1।। गरीब, एक हरि के नाम बिना, नारि कुतिया हो। गली-2 भौंकत फिरै, टूक ना डालै को।।2।। गरीब, बीबी पड़दे रहैं थी, डयोढी लगती बार। गात उघाड़े फिरती हैं, बन कुतिया बाजार।।3।। गरीब, नकबेसर नक से बनी, पहरत हार हमेल। सुन्दरी से सुनही (कुत्तिया) बनी, सुनि साहिब के खेल।4। कबीर, हरि के नाम बिना, राजा ऋषभ होए। माटी लदै कुम्हार कै, घास ना डाले कोए।।5।। कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हांे भी गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।।6।। कबीर, गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हरि की सेव। कहै कबीर स्वर्ग से, फेर दिया सुखदेव।।7।। कबीर, राजा जनक से नाम ले, किन्हीं हरी की सेव (पूजा)। कहै कबीर बैकुण्ठ में, उल्ट मिले सुखदेव।।8।। कबीर, सतगुरु के उपदेश का, लाया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाता नरक द्वार।।9।। कबीर, नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचा तान। उनतें कबहु ना छुटता, फिर फिरता चारों खान।।10।। कबीर, चार खानी में भ्रमता, कबहु ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, सतगुरु के उपकार।।11।। कबीर, सात समुन्द्र मसि करूं, लेखनी करूं बनराय। धरती का कागद करूं, गुरु गुण लिखा न जाए।12। कबीर, गुरु बड़े गोविन्द से, मन में देख विचार। हरि सुमरे सो रह गए, गुरु भजे हुए पार।।13।। कबीर, गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागुं पाय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविन्द दिया मिलाय।।14।। कबीर, हरि के रूठतां, गुरु की शरण में जाय। कबीर गुरु जै रूठजां, हरि नहीं होत सहाय।।15।।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें साधना TV शाम 7.30 बजे... और पढिये अनमोल पुस्तक "ज्ञान गंगा",
Jagat guru rampalji
गीता अध्ययन 4 श्लोक 34 मैं जिस तत्वदर्शी संत के बारे मैं लिखा गया है वह तत्वदर्शी संत आज हरीयाणा की पावन धरती पर विराजमान है और शास्त्र अनुसार साधना बता रहे हैं
🏝🏝
👇
सूक्ष्म वेद में गुरु के लक्षण बताएं हैं.
गरीब ,सतगुरु के लक्षण कहूं मधुरे बैंन विनोद।
चार वेद छ: शास्त्र 18 बोध।
गुरु के लक्षण चार बखाना प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना।।
दूजे हरी भक्ति मन कर्म बानी तीजे समदृष्टि करी जानी।। चौथे वेद विधि सब कर्मा, चार गुरु गुण जानो मर्मा।।
कबीर परमेश्वर जी ने कहां है कि जो सच्चा गुरु होगा उसके 4 मुख्य लक्षण होते हैं।
1. सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।
2. दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन कर्म वचन से करता है अर्थात उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता।
3. तीसरा लक्षण यह है कि वह सर्व अनुयायियों से समान व्यवहार करता है भेदभाव नहीं रखता।
4. चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदो ( चार वेद तो सब जानते हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद तथा पांचवा वेद सूक्ष्म वेद सरवन वेदो) के अनुसार करता और कराता है.
Jagat guru rampalji Maharaj is giving freedom Azaadi!
from theft, dowry, corruption, intoxication, Tobacco
He is the true liberator of the world.
must watch Sadhana TV at 7:30 pm.
सभी 📚वेदों,शास्त्रों और पुराणों पर आधारित ज्ञान से तत्व दर्शी संत सतगुरु रामपाल जी ने सिद्ध कर दिया है कि परमात्मा कौन है?कहाँ रहता है?जिसकी 📿सतभक्ति से जीव जन्म मरण के चक्कर से छूट जाता है.
🔭श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।
यह तत्वज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं।
और गीता में यह भी कहा गया है कि जो गीता मैं उल्टा लटका हुआ संसार रूपी रुक्ष है उसके जड़ से लेकर पत्ते तक जो भी संत जानकारी देगा वही तत्वदर्शी संत है और यह ज्ञान संत रामपाल जी महाराज जी ने बताया है।
Jagat guru rampalji यह मनुष्य जन्म आपको बहुत युगों के बाद प्राप्त होता हैइसलिए आप तत्व दर्शी सन्त की शरण में जाकर उनकी बताई भक्ति करके मोक्ष प्राप्ति करनी चाहिये।
गीता अध्याय 8 श्लोक 5 तथा 7 में अपनी भक्ति करने को कहा है तथा युद्ध भी कर , निःसंदेह मुझे प्राप्त होगा , परंतु जन्म - मृत्यु दोनों की बनी रहेगी ।
पूर्ण परमात्मा तो कोई और है .
उसी की जानकारी Sant rampalji maharaj दे रहे हैं।
पूर्ण संत का सत्संग सुनने से आत्मा को शांति मिलती है। सत्संग से आत्मा और परमात्मा ज्ञान का पता चलता है।
तत्वदर्शी संत के सत्संग से पता चलता है कि परमात्मा खतरनाक बीमारी को भी खत्म कर देता है। यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 32 में प्रमाण है कि कबीर परमात्मा पाप के विनाशक हैं।
जब तक सच्चे गुरु (सतगुरू) की प्राप्ति नहीं होती है तब तक गुरु बदलते रहना चाहिए।
"जब तक गुरु मिले ना सांचा।
तब तक करो गुरु दस पांचा।।"
🌿जिस परिवार में पूर्ण संत के सत्संग चलते हैं वहां मुसीबतें नहीं आती और वह परिवार सुखमय जीवन जीता है।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे अर्जुन तू सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उस परमात्मा की कृपा से ही परम शांति को प्राप्त होगा तथा शाश्वत् स्थान अर्थात् सनातन परम धाम अर्थात् कभी न नष्ट होने वाले सतलोक को प्राप्त होगा। तु उसकी जानकारी तत्वदरशी संत से पुछ
पुरी दुनिया में True Guru sant rampalji maharaj ji है।